अमृताः प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है, रोगों को भगाती है

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Sep 23 '20 | By Dr.Suresh Kumar Agarwalla | Views: 622 | Comments: 0
अमृताः प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है, रोगों को भगाती है

अमृता परिचयः अमृता एक सुदृढ़ लता है। यह भारत के सभी राज्यों में आसानी से फलती-फूलती है। इसके गहरे हरे रंग के पत्ते हृदय के आकार के होते हैं। मटर दानों के आकार के इसके फल कच्चे में हरे और पकने पर गहरे लाल रंग के होते हैं। यह लता पेड़ों, चहारदीवारी और घर की छत पर आसानी से फैलती है। आयुर्वेद में इसके गुणों का विस्तृत वर्णन किया गया है। दो सौ से अधिक प्रकार की आयुर्वेदिक दवाइयों में इसका इस्तेमाल किया जाता है।


अमृता लगाने के लिए उपयुक्त स्थान, विधि एवं देखभालः 

अनेक वर्षों तक जीवित रहनेवाली इस लता के तने का 10-12 इंच लंबा टुकड़ा रोपकर इसे आसानी से उगाया जा सकता है। फैलने पर इसके तने से पतली-पतली जड़ें निकल कर हवा में लटकती है।

आधुनिक स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का मतःपिछले पंद्रह वर्षों में भारत एवं अन्य देशों के अनेक चिकित्सा वैज्ञानिकों ने अमृता का गहन अध्ययन कर पाया है कि इसमें शरीर के प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) ठीक करने एवं बढ़ाने के अद्भुत गुण हैं। इन गुणों के कारण ही अमृता अनेक रोगों में लाभदायक होती है।


दवा के रूप में कैसे होता है इसका उपयोगः 

मुख्य रूप से तीन साल पुराने तने का उपयोग किया जाता है। कहीं-कहीं पत्तों और जड़ को भी काम में लेते हैं।


संक्रामक बुखार में अत्यंत प्रभावीः 

लगभग अंगूठे के समान मोटे अमृता के तने का छह-आठ अंगुल टुकड़ा लेकर उसके छोटे-छोटे टुकड़े काट कर या कूचकर दो कप पानी में उबालें। जब आधा कप पानी रह जाये तो उतार लें। इसे छानकर सुबह-शाम खाली पेट रोगी को पिलायें। ताजा अमृता न मिलने पर छाया मे सुखाई हुई अमृता के 5-10 ग्राम पाउडर का प्रयोग करें। इस प्रयोग से बुखार दूर होने के साथ-साथ रोगी की कमजोरी भी दूर हो जाती है और भूख लगने लगती है। अगर डॉक्टर ने बुखार के लिए एंटीबायोटिक खाने की सलाह दी हो तो एंटीबायोटिक के साथ इसका प्रयोग करने से न केवल एंटीबायोटिक की आवश्यकता कम हो जाती है, बल्कि एंटीबायोटिक से होनेवाला कुप्रभाव (साइड इफेक्ट्स) भी कम हो जाता है।


रक्त प्रदर की बीमारी का इलाजः

अमृता के पत्ते एवं जड़ दोनों में से प्रत्येक 5 ग्राम पीसकर  इसका रस निकाल लें और प्रत्येक दिन खाली पेट पीयें। दो माह तक लगातार इसका सेवन करने से रक्त प्रदर ठीक हो जाता है।

श्वेत प्रदर बच्चेदानी की गांठःअमृता के ताजे तने या पाउडर का प्रयोग बुखार में बतायी गयी विधि के अनुसार ही करें। तीन माह तक सुबह एक बार खाली पेट प्रयोग करने से लाभ होता है। मासिक के दिनों में इसका प्रयोग न करें।


जोड़ों का दर्दः 

अदरख या सोंठ के साथ इसका प्रयोग करने से दर्द और जोड़ की सूजन में आराम मिलता है।


इन बीमारियों में होता है अमृता का उपयोग 

·         सभी प्रकार के पुराने बुखार

·         सभी प्रकार के संक्रामक रोग

·         टी.बी.

·         लीवर की बीमारियां

·         दुर्बलता, कमजोरी

·         भूख न लगना

·         चर्म रोग- खुजली, फोड़े, फुन्सी, सोरियासिस, जुलपित्ती

·         खांसी

·         अस्थमा (दमा)

·         पुराने दूषित घाव

·         मासिक धर्म में अधिक खून जाने पर

·         हड्डी टूटने पर

·         आमवात (रूमेटाइड आर्थराइटिस)

·         डायबिटिज (मधुमेह)

 

 

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