गहन शोध और अध्ययन से निकला ‘इम्यूटोन’ का अमृत

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Sep 10 '20 | By Dr.Suresh Kumar Agarwalla | Views: 1201 | Comments: 0
गहन शोध और अध्ययन से निकला ‘इम्यूटोन’ का अमृत

डॉ. सुरेश अग्रवाल ने इम्यून सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए बनायी अनूठी दवा




हमारे स्वास्थ्य का सबसे महत्वपूर्ण आधार है-इम्युनिटी। इम्युनिटी का अर्थ है हमारे शरीर के अंदर निहित वह क्षमता, जो बीमारियों के हमले से हमें प्राकृतिक रूप से बचाती है। कोरोना की महामारी ने जब पूरी दुनिया को कमोबेश एक साथ अपनी चपेट में लिया, तो यह बात सामने आयी कि इसकी चपेट में आकर सबसे ज्यादा वैसे लोग आये, जिनकी इम्युनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है। दरअसल, सच तो यह है कि इम्युनिटी की कमी या गड़बड़ी से केवल कोरोना ही नहीं, बल्कि अन्य बीमारियां भी होती हैं। जाहिर है, रोगों से लड़ने या उन्हें करीब आने से रोकने के लिए शारीरिक क्षमता यानी इम्युनिटी का विकास अत्यंत जरूरी है। इस तथ्य को रांची के डॉ. सुरेश कुमार अग्रवाल ने मेडिकल की पढ़ाई और शोध के दौरान समझ लिया था। उन्होंने तभी तय कर लिया था कि आगे चलकर वह शरीर के इम्यून सिस्टम के स्वाभाविक विकास के लिए प्राकृतिक स्रोतों की खोज करेंगे, उससे जुड़े प्रयोगों के प्रति खुद को समर्पित करेंगे और इसके लाभ के प्रति सामान्य जन को जागरूक करेंगे।   


मेडिकल कॉलेज में सर्जरी में एम.एस. (मास्टर इन सर्जरी) की पढ़ाई के दौरान छात्रों को किसी विषय पर शोध कर थीसिस प्रस्तुत करना आवश्यक होता है। डॉक्टर सुरेश कुमार अग्रवाल ने  1985 में रांची के राजेंद्र मेडिकल कॉलेज में एम.एस. के दौरान थीसिस के लिए जो विषय चुना, वह था- कैंसर रोगियों में इम्यून सिस्टम की गड़बड़ियां। सर्जरी में इस विषय के चुनाव से उनके गाइड रिम्स के तत्कालीन विभागाध्यक्ष डा. जी. दास विस्मित हुए थे। दरअसल यह विषय बिल्कुल नया था और सर्जरी से इसका कोई सीधा संबंध नहीं था।

डॉ. अग्रवाल ने अध्ययन और शोध के दौरान पाया कि इम्यून सिस्टम की कमजोरियों और गड़बड़ियों के कारण कैंसर ही नहीं तरह-तरह के इन्फेक्शन, एलर्जी, सोरियासिस, सफ़ेद दाग , गठिया, दमा और अनेक प्रकार के ऑटो इम्यून रोग होते हैं। डॉ. अग्रवाल ने यह भी पाया कि इम्यून सिस्टम की कमजोरियों और गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए एलोपैथ चिकित्सा विज्ञान में दवाइयां लगभग हैं ही नहीं। उन्होंने पाया कि एलोपैथ की दवाइयां ज्यादातर बीमारियों में मरीज की तकलीफ को न्यून स्तर पर जरूर ले जाती हैं, लेकिन शरीर के भीतर ऐसे सिस्टम के विकास में इतनी कारगर नहीं होतीं कि वापस ऐसी बीमारियों के हमले न हों। एलोपैथ चिकित्सा की पढ़ाई के बावजूद डॉ. अग्रवाल छात्र जीवन से ही वनौषधियों और आयुर्वेद में गहरी रुचि रखते थे। एम.एस. में शोध के दौरान वह इस तथ्य को लेकर जिज्ञासु रहे कि क्या आयुर्वेद की वनौषधियां इम्यून सिस्टम को प्रभावित कर सकती हैं?


इसी क्रम में वह रांची वेटनरी कॉलेज के माइक्रोबायोलोजी के प्रोफेसर बी. के.तिवारी और उड़ीसा से वेटेनरी विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएट करने आये छात्र डा. प्रशांत सुबुद्धि के संपर्क में आये। उन दोनों के साथ मिलकर डॉ. अग्रवाल ने अमृता यानी गुडिच या गिलोय और तीन अन्य वनौषधियों के इम्यून सिस्टम पर प्रभाव पर गहन अध्ययन किया। भारत ही नहीं, पूरे विश्व में यह अनूठा अध्ययन था। अध्ययन के परिणाम अत्यंत उत्साहवर्धक रहे। 1989 में शोध पूरा होने होने पर डॉ अग्रवाल इस नतीजे पर पहुंचे कि अमृता हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम की कमजोरियों और गड़बड़ियों को ठीक करने में अत्यंत प्रभावशाली है।


रांची वेटनरी कॉलेज की प्रयोगशाला में प्रयोग के नतीजों के साथ-साथ डॉ. अग्रवाल ने इस विषय पर प्रकाशित अन्य शोध पत्रों और आयुर्वेद विज्ञान के ग्रंथों के अध्ययन के आधार पर अमृता यानी गिलोय के अधिकतम गुणों वाला एक्सट्रैक्ट बनाने की पद्धति विकसित कर ली। इसके साथ उन्होंने हिमालय की उंचाइयों पर पाये जाने वाले कुटकी मूल, अश्वगन्धा और यशद भस्म के कॉम्बिनेशन से बनायी इम्यून सिस्टम पर काम करने वाली बहु उपयोगी दवा-  “कैप्सूल इम्यूटोन”।  


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कुछ ही महीनों में घर-परिवार, स्वजनों और अपने रोगियों पर “कैप्सूल इम्यूटोन”  के प्रयोग से अलग-अलग रोगों पर अप्रत्याशित लाभ से डॉ.अग्रवाल इस नतीजे पर पंहुचे कि आने वाले दिनों में इम्यून सिस्टम की गड़बड़ियों को ठीक करके अनेक साधरण और कठिन रोगों की बेहतर चिकित्सा की जा सकती है और इसमें आयुर्वेद में वर्णित वनौषधियां  महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी।


“कैप्सूल इम्यूटोन”  के उत्पादन का लाइसेंस लेकर इसे 1990 में ही बाज़ार में उतारा गया। तीन हीनो में ही अनेक चिकित्सकों ने विभिन्न रोगों में  “कैप्सूल इम्यूटोन”  की उपयोगिता को लेकर बेहतरीन अनुभव बताये। व्यवसाय जगत की पेचिदगियों  और परिस्थितिजन्य कारणों से डा.अग्रवाल ने बाद में  “कैप्सूल इम्यूटोन”  का उत्पादन और प्रयोग अपने क्लिनिक के रोगियों तक ही सीमित कर लिया। विगत 30 वर्षों से वे मरीजों की इम्युनिटी की गड़बड़ियों को ठीक करने के लिए इसका लगातार उपयोग कर रहे हैं।

डॉ.अग्रवाल ने 1999 में आयुर्वेद और एलोपैथ के इंटीग्रेशन के साथ स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के लिए रांची में अमृता पारिवारिक स्वास्थ केंद्र की स्थापना की। इम्यून सिस्टम की गड़बडियों के कारण होने वाले रोगों की चिकित्सा में अपने अनुभवों के आधार पर डा.अग्रवाल शरीर के अलग-अलग तंत्रों की इम्युनिटी सुदृढ़ करने के लिए काम कर रहे हैं। चिकित्सकीय अध्ययन को व्यापक आयाम देने के लिए उन्होंने अपने आवासीय परिसर को वनौषधियों और आयुर्वेद के साथ एलोपैथ के समन्वय का एक अनूठा केंद्र बन दिया है।


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