मंडूकपर्णी भारत ही नहीं,
विश्व के अनेक देशो में सैकड़ों वर्षों में उपयोग में लाया जाने वाला वनस्पति है।
यह एक लता है, जो भूमि पर तैजी से फैलता है और पानी की प्रचुरता में बारहों महीने
हरी-भरी रहती है। यह अक्सर तालाब या खेत के किनारे पायी जाती है। गुर्दे के आकार
के इसके पत्ते आधे से दो इंच के होते हैं। पत्तियों के किनारे गोल दांतेदार होते
हैं। फूल और फल अत्यंत छोटे एवं इसके बीज चपटे होते हैं। झारखंड में इसे बेंग साग
के नाम से अक्सर बाजारों में बिकते हुए देखा जा सकता है। स्थानीय आदिवासी इसका
सेवन हरे साग के रूप में करते हैं।
मंडूकपर्णी लगाने के लिए
उपयुक्त स्थान, विधि एवं देखभालः
मंडूकपर्णी को अधिक पानी
वाले स्थानों या नमी वाली मिट्टी में आसानी से लगाया जा सकता है। इसलिए इसे बगीचे
में नल या कुएं के पानी के निकास की नालियों के आस-पास लगाना उपयुक्त होता है। इसे
गमले में भी लगाया जा सकता है, लेकिन गमले से औषधीय उपयोग के लिए पर्याप्त मात्रा
में इसे प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
आधुनिक स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का मतः
मंडूकपर्णी पर स्वास्थ्य
वैज्ञानिकों ने अनेक अध्ययन कर यह पाया है कि इसमें शरीर की प्रतिरोधक शक्ति
(इम्युनिटी) को बढ़ाने के गुण हैं। कुष्ठ रोग, अनेक प्रकार के चर्म रोग, मस्तिष्क
रोग, आंव आदि में इसके लाभकारी होने के निश्चित प्रमाण मिले हैं।
चर्म रोगों के इलाज में
प्रभावीः
चर्म रोगों में मंडूकपर्णी
के ताजा पत्तों या इसका शुष्क चूर्ण खाने के साथ-साथ इसके रस या इससे बने तेल को
लगाने से भी अधिक लाभ होता है।
पेट के रोग में उपचार में
सहायकः
आंव या कफ के साथ साथ मल,
बार-बार पैखाना, पेट साफ न रहने पर गैस की शिकायत, कभी-कभी सिर में दर्द होने जैसी
शिकायतों में इसके पत्ते का रस तीन-चार चम्मच गाय के दूध के साथ मिलाकर पीना
चाहिए।
पसीने की दुर्गंध करता है
दूरः
पसीने के दुर्गंध में इसके
पत्तों का रस पांच-छह चम्मच थोड़ा सा गर्म कर दूध के साथ थोड़ी सी चीनी मिलाकर दो
माह तक पीने से परेशानी दूर हो जाती है
बच्चों की बोली न निकल पा
रही हो तो मंडूकपर्णी खिलायें
बच्चों में अक्सर यह शिकायत पायी जाती है। कई
बार बच्चों की बोली निकलने में देर होती है या बोली साफ-साफ नहीं निकलती है तो
इसके पत्ते का एक चम्मच रस गर्म कर लें और ठंडा होने के बाद इसमें 25-30 बूंद मधु
मिलाकर ठंडे दूध के साथ पिलायें तो यह समस्या दूर हो जाती है।
अनिद्रा का भी करता है
उपचारः
मंडूकपर्णी के दस पत्तों को
गाय के दूध के साथ मिलाकर एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे अनिद्रा की शिकायत दूर हो
जाती है।
कुष्ठ के उपचार में भी है
लाभदायीः
कुष्ठ रोग की प्रारंभिक
अवस्था में मंडूकपर्णी के दस-पंद्रह ताजा पत्ते सुबह खाली पेट चबाकर प्रतिदिन खाने
से दो-तीन माह में कुष्ठ रोग वाली त्वचा का रंग स्वाभाविक हो जाता है और लामा
(बाल) पुनः उग आते हैं। तीन से छह महीने तक इसके उपयोग से रोग से पूर्ण मुक्ति
मिलती है। ताजा पत्ती न मिलने पर छाया में सुखाये हुए पंचांग का चूर्ण 500
मिलिग्राम ले सकते हैं।
इन बीमारियों के इलाज में
है लाभकारीः
·
आंव
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कुष्ठ रोग
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हिस्टिरिया, उन्माद
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चर्म रोग
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पतला दस्त (डायरिया)
·
अनिद्रा
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मंद बुद्धि
·
एलर्जी
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